Wednesday 3 February 2016

भारत एक सहिष्णु देश:

"हाँ मैं भारत में ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता हूँ।"

भारत दुनिया की सांस्कृतिक रूप से सबसे विविध देश है। भारत एक नितांत धार्मिक देश है जहाँ हर धर्म का अपना मान-सम्मान और ठौर है। यह शायद एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ चार धर्मों की उत्पत्ति हुई हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं सिक्ख धर्म। भारत ऐसा देश है जहाँ असाम्प्रदायिकता (धर्म-निरपेक्षता) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान में प्रतिष्ठापित किया गया है। यहाँ एक विचित्र वाक् युद्ध छिड़ी हुई है-
"क्या भारत-दुनिया की सबसे बड़ा लोकतंत्र एक असएहिष्णु देश बनता जा रहा है? या ये एक तरह का  नाशकरी सियासी जुमला है!"

अभी हमारी दशा 'बेबल के मीनार' के जैसी है जहाँ प्रजा एक ऐसी दशा में है जहाँ सिर्फ़ भ्रांति है और लोगों को स्वार्थ सिद्ध करने के लिए बरगलाया जा रहा है। अवमानक विचारधारा और अश्लील राजनीति प्रभावशाली लोगों की चाल बन गई है। अगर दादरी हत्याकांड की  बात करे तो वहाँ एक आदमी की बेक़ाबू भीड़ ने हत्या इस लिए कर दी क्यूँ की अफ़वाह उड़ी की उसने गौ माँस खाया है और अपने घर पर रखा भी है। यह एक पथभ्रष्ट एवं मानवता के ऊपर तीक्ष्ण प्रहार है।कोई भी धर्म अपने अनुयायियों को  अधर्म के मार्ग पर चलना या असहनशील होना नहीं सिखाता। यह तो ऐसे लोग सिखाते है जो अपने उल्लू दूसरों से सीधे कराते हैं मासूम लोगों को बरगला कर। मेरे और आपके जैसे आम लोग ऐसा जघन्य
अपराध कर ही नई सकते, ऐसे लोग ना किसी जाती प्रधान के होते है ना हे इनका कोई धर्म होता है, ये तो बस मुजरिम होते है और इनका धर्म-अधर्म  होता है। ये हमारे व्यवस्था का दोष है की हम जब इन घटनाओं का वर्णन सुनते है तब उन्मे ऐसे लोगों का धर्म भी प्रचारित किया जाता है, जो निदनिया है। ऐसी घटाए जब उजागर होती है तब धर्म की बात को लेकर विवाद पैदा होता है और तब हम धार्मिक असहिष्णुता की बात करने लगते हैं। 
कई राजनेता इस बात पर अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते हुए टीवी चैनलों पर दिख जाएँगे। आरोप और प्रत्यारोप लगाए जायेंगे पर निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता। बहुत से राजनेता दादरी कांड के पश्चात वाह पहुँचे सबने अपने अपने हिसाब से इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाया और चले गए।मेरा प्रश्न यह है की- क्या किसी ने बिना गणित किए हुए उस परिवार का दुःख बाटने की सच में कोशिश की? वहाँ देश भर से जिन्हें हम धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर ख़याल के नेता या पार्टियाँ कहते है उसके नुमाइंदे वहाँ आए अपनी-अपनी चिप्पी लगाई और चल दिए। क्या इसे सही मायने में सेक्युलरिज़म कहेंगे? सेक्युलरिज़म तो उस चीज़ को कहते जब सब सही मायने में अपने धर्मों को भूल कर सारी जातियों को भूल का वहाँ एक मनुष्य का दर्द बाटने की भावना से जाते। 

दूसरी मुद्दा जो बड़ी हीं तेज़ी से फैला और पूरे देश का ध्यान अपने ओर खींचा वो है  अवॉर्ड वापसी का। जिसमें देश के बुद्धिजीवी और ख़ास कौशल वाले लोग अपने सम्मान और संज्ञा लौटा रहे थे। क्या हमें ज़्यादा महत्वपूर्ण विषय जैसे की ग़रीबी और भूखमरी कैसे मिटाए ये छोड़ ऐसी बातों पर विवाद खड़ा करना शोभा देता है। यह बात उतनी ही सच है कि हमारे देश में अपने विचार व्यक्त करने की पूरी छूट है और हमें उन सारे बुद्धिजीवियों का सम्मान करना चाहिए और हर सम्भव कोशिश होनी चाहिए कि उनकी समस्या का हल हो। बुद्धिजीवियों का भी ये कर्तव्य बनता है की जिस मीडिया, सोशल नेट्वर्क, ब्लोग्स का सहारा लेकर अपने मुद्दे उठा रहे है उनका इस्तेमाल वे लोगों की समस्या हल करने के लिए करे निजी या राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठ कर। अगर ऐसे लोग  कोशिश करे तो समाज का चेहरा बदलने में एक बड़ी भूमिका अदा कर सकते है, भाईचारा, सामूहिक शांति और सद्भाव को प्रोत्साहित करे और सम्प्रदायिकता के जाल को तोड़ एक तनाव मुक्त समाज का नवनिर्मान करे। आम जानता का भी एक दायित्व है के इंसानियत पे भरोसा करे और सामाजिक तत्वों से परहेज़ करे।
ऐसी सारी घटाए भारत के गरिमा को अंतरष्ट्रिया स्तर पर चोट पहुँचती हैं। अगर देश की अवाम असहिष्णु नहीं हो तो कहा से कुछ लोग उठ कर साम्प्रदायिक ताक़त को सबल और मानवता को दुर्बल कर सकेंगे। अगर जन-मन से जाग जाए तो हमारी क़ौमी एकता को तोड़ने की ताक़त किसी के पास नहीं है। भारत ना कभी असएहिष्णु था, ना है, और ना कभी रहेगा। 

डॉ. राजन पांडेय 

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