Sunday 7 February 2016

Are Designer Babies the next 'bazaar commodity'?


Eugenics is steppingstone to Genetically Modified babies which is the future of consumer based eugenics. But this raises serious concerns over shaky moral platform that promise genetic modifications to ameliorate. How is it better than the theories of Negative or Positive eugenics and its basic science 'Euthenics'? 

As a first, last week Britain granted its first official research license to genetically modify human embryos to a pilot project that aims to give hope to women struggling to conceive. This eccentric decision makes Britain one of the first countries in the world to grant such authorizations.
Which is raising eyebrows all over the world for ethical concerns about "designer babies". A designer baby is a result of genetic screening or genetic modification. Embryos may be screened prior to implantation, or possible use of gene therapy techniques in order to create desired traits in a child. Basically it has something to do with adulteration in genetic makeup of an unborn baby. 

Researchers explained that modified embryos have to be destroyed within 14 days and will not be implanted in a woman they will only examine embryos in their first few days. Such research is important for understanding how a healthy human embryo develops and it will certainly enhance our understanding of IVF success rates. The embryos that will be used are donated spares that are recovered while preparing a female for In-vitro fertilization (IVF) treatment and don't need them once the procedure is completed. The scientists would use CRISPR-Cas9 technique which allows scientists to insert, remove or correct DNA. The technique could also be used to treat illnesses like sickle cell diseases, cystic fibrosis and some cancers.

Are we entering Hitler's den again??

Ethnical concerns over genetic modification to be similar to Nazi or American Eugenics Movement is in the air. Disturbing the genetic makeup of an individual which is a work of nature will it prove a boon or a bane. This could create a class divide between designer and non designer babies. Moreover it is decision that is made by one generation for future a generation which has no vote to say that it would want a change or not in genetic makeup. It is disturbing to think of possible ways things can turn sour with the use of the technology to improve the DNA constitution. While it is certain that the prospect of gene editing in human embryos raises series of ethical issues and challenges but this problem needs to dealt with in a balanced manner under strict regulations and guidelines so that the company's don't make profit making strategies out of what could be of great help to the mankind.

Wednesday 3 February 2016

भारत एक सहिष्णु देश:

"हाँ मैं भारत में ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता हूँ।"

भारत दुनिया की सांस्कृतिक रूप से सबसे विविध देश है। भारत एक नितांत धार्मिक देश है जहाँ हर धर्म का अपना मान-सम्मान और ठौर है। यह शायद एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ चार धर्मों की उत्पत्ति हुई हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं सिक्ख धर्म। भारत ऐसा देश है जहाँ असाम्प्रदायिकता (धर्म-निरपेक्षता) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान में प्रतिष्ठापित किया गया है। यहाँ एक विचित्र वाक् युद्ध छिड़ी हुई है-
"क्या भारत-दुनिया की सबसे बड़ा लोकतंत्र एक असएहिष्णु देश बनता जा रहा है? या ये एक तरह का  नाशकरी सियासी जुमला है!"

अभी हमारी दशा 'बेबल के मीनार' के जैसी है जहाँ प्रजा एक ऐसी दशा में है जहाँ सिर्फ़ भ्रांति है और लोगों को स्वार्थ सिद्ध करने के लिए बरगलाया जा रहा है। अवमानक विचारधारा और अश्लील राजनीति प्रभावशाली लोगों की चाल बन गई है। अगर दादरी हत्याकांड की  बात करे तो वहाँ एक आदमी की बेक़ाबू भीड़ ने हत्या इस लिए कर दी क्यूँ की अफ़वाह उड़ी की उसने गौ माँस खाया है और अपने घर पर रखा भी है। यह एक पथभ्रष्ट एवं मानवता के ऊपर तीक्ष्ण प्रहार है।कोई भी धर्म अपने अनुयायियों को  अधर्म के मार्ग पर चलना या असहनशील होना नहीं सिखाता। यह तो ऐसे लोग सिखाते है जो अपने उल्लू दूसरों से सीधे कराते हैं मासूम लोगों को बरगला कर। मेरे और आपके जैसे आम लोग ऐसा जघन्य
अपराध कर ही नई सकते, ऐसे लोग ना किसी जाती प्रधान के होते है ना हे इनका कोई धर्म होता है, ये तो बस मुजरिम होते है और इनका धर्म-अधर्म  होता है। ये हमारे व्यवस्था का दोष है की हम जब इन घटनाओं का वर्णन सुनते है तब उन्मे ऐसे लोगों का धर्म भी प्रचारित किया जाता है, जो निदनिया है। ऐसी घटाए जब उजागर होती है तब धर्म की बात को लेकर विवाद पैदा होता है और तब हम धार्मिक असहिष्णुता की बात करने लगते हैं। 
कई राजनेता इस बात पर अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते हुए टीवी चैनलों पर दिख जाएँगे। आरोप और प्रत्यारोप लगाए जायेंगे पर निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता। बहुत से राजनेता दादरी कांड के पश्चात वाह पहुँचे सबने अपने अपने हिसाब से इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाया और चले गए।मेरा प्रश्न यह है की- क्या किसी ने बिना गणित किए हुए उस परिवार का दुःख बाटने की सच में कोशिश की? वहाँ देश भर से जिन्हें हम धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर ख़याल के नेता या पार्टियाँ कहते है उसके नुमाइंदे वहाँ आए अपनी-अपनी चिप्पी लगाई और चल दिए। क्या इसे सही मायने में सेक्युलरिज़म कहेंगे? सेक्युलरिज़म तो उस चीज़ को कहते जब सब सही मायने में अपने धर्मों को भूल कर सारी जातियों को भूल का वहाँ एक मनुष्य का दर्द बाटने की भावना से जाते। 

दूसरी मुद्दा जो बड़ी हीं तेज़ी से फैला और पूरे देश का ध्यान अपने ओर खींचा वो है  अवॉर्ड वापसी का। जिसमें देश के बुद्धिजीवी और ख़ास कौशल वाले लोग अपने सम्मान और संज्ञा लौटा रहे थे। क्या हमें ज़्यादा महत्वपूर्ण विषय जैसे की ग़रीबी और भूखमरी कैसे मिटाए ये छोड़ ऐसी बातों पर विवाद खड़ा करना शोभा देता है। यह बात उतनी ही सच है कि हमारे देश में अपने विचार व्यक्त करने की पूरी छूट है और हमें उन सारे बुद्धिजीवियों का सम्मान करना चाहिए और हर सम्भव कोशिश होनी चाहिए कि उनकी समस्या का हल हो। बुद्धिजीवियों का भी ये कर्तव्य बनता है की जिस मीडिया, सोशल नेट्वर्क, ब्लोग्स का सहारा लेकर अपने मुद्दे उठा रहे है उनका इस्तेमाल वे लोगों की समस्या हल करने के लिए करे निजी या राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठ कर। अगर ऐसे लोग  कोशिश करे तो समाज का चेहरा बदलने में एक बड़ी भूमिका अदा कर सकते है, भाईचारा, सामूहिक शांति और सद्भाव को प्रोत्साहित करे और सम्प्रदायिकता के जाल को तोड़ एक तनाव मुक्त समाज का नवनिर्मान करे। आम जानता का भी एक दायित्व है के इंसानियत पे भरोसा करे और सामाजिक तत्वों से परहेज़ करे।
ऐसी सारी घटाए भारत के गरिमा को अंतरष्ट्रिया स्तर पर चोट पहुँचती हैं। अगर देश की अवाम असहिष्णु नहीं हो तो कहा से कुछ लोग उठ कर साम्प्रदायिक ताक़त को सबल और मानवता को दुर्बल कर सकेंगे। अगर जन-मन से जाग जाए तो हमारी क़ौमी एकता को तोड़ने की ताक़त किसी के पास नहीं है। भारत ना कभी असएहिष्णु था, ना है, और ना कभी रहेगा। 

डॉ. राजन पांडेय 

सपने देखने की आज़ादी- स्टार्टअप्स और नयें महकल्प के 'इंडे-प्रेनोर्स':


स्टार्टअप्स  ने दुनियाँ भर के युवाओं में हलचल सी मचा दी हैं। आज के युवा अभित और अक्खड़ है जो चुनौतियों से नहीं डरते। हर साल सैकड़ों वृत्तिक युवा चितप्रचलित तौर तरीक़ों को हर क़दम पर ललकारते हैं और बड़े टेक जाइयंट्स के मोटे और लुभाने ऑफ़र्ज़ को ठुकरा कर अपने धधकते विचारों को वास्तविकता में बदल रहे हैं। आज के युवाओं को किसी का मोहताज रहना नहीं भाता अपितु उन्हें नौकरीयों का  सृष्टिकर्ता बनना ज़्यादा रास आता हैं।
स्टार्ट उप इंडिया मिशन कार्ययोजना का उद्देश्य जमीनी स्तर पर उद्यमशीलता को बढ़ावा देना है।आज आइ.आइ.टी. व आइ.आइ. एम. से निकलने वाले मेधावी छात्र अपने ख़ुद के स्टार्ट अप्स को ज़्यादा तवज्जु दे रहे हैं। कुछ साल पहले तक ऐसे दृढ़ लोगों के संख्या 2% थी जो आज 10% पहुँच गयीं हैं।  पिछले साल कुल 1200 नए स्टार्ट अप सुरू किए गए। अगर 2014 के आकड़ों को पिछले साल के आकड़ों से तुलना करे तो देखने में आता है की इनमे कुल 40% की वृद्धि हुई हैं। सार्वभौमिक रूप से भारत स्टार्ट अप्स के  स्थिति में तीसरे स्थान पर चीन से आगे और अमेरिका और इंग्लंड से पीछे तीसरे स्थान पर हैं। 
स्टार्ट अप इंडिया मिशन के शुरुआती कार्यक्रम का उद्देश्य देश के युवाओं की उद्यमी भावना का उत्सव मनाना था। इसमें देश-विदेश के प्रमुख स्टार्टअप के संस्थापक व सीईओ ने भाग लिया। इस योजना का मक़सद उद्यमशीलता और रोजगार सृजन प्रोत्साहित करना तथा बैंकों द्वारा स्टार्टअप उपक्रमों को वित्तपोषण से प्रोत्साहित करना था। 
स्टार्ट अप इंडिया मिशन का सार:
1. प्रोफ़िट होने पर तीन साल तक स्टार्टअप्स को इनकम टैक्स में छूट दी जाएगी। और अगर उद्यमी अपनी प्रॉपर्टी को बेच कर स्टार्टअप में इन्वेस्ट करे तो कैपिटल गेन टैक्स की छूट दी जाएगी।
2. तीन साल तक स्टार्टअप का कोई इंस्पेक्शन नहीं होगा। मतलब सरकार के तरफ़ से स्टार्ट अप्स के काम काज में दख़लअंदाज़ी नहीं होगी। और तो और उद्यमी सरकारी दफ़्तरों के चक्कर ज़ायद ना काटना पड़े इसके लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन आधारित कंप्लायंस की सुविधा उपलब्ध होंगीं।
3. सरकार द्वारा 10 हजार करोड़ रुपए का फंड बनाया जाएगा। इसमें हर साल 2500 करोड़ रुपए का फंड स्टार्टअप्स को दिया जाएगा। 
4. स्टार्टअप इंडिया हब : सिंगल प्वाइंट ऑफ कॉन्टैक्ट बनाया जाएगा।स्टार्टअप के लिए ऑनलाइन पोर्टल लांच होगा साथ ही मोबाइल ऐप के जरिए छोटा ई-फॉर्म पेश किया जाएगा जिसमें रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था होगी।
5. एक स्टार्टअप उद्यमी के लिए प्रत्यय या बिज़्नेस आइडिया सबसे बड़ी पूँजी है और इसे बचाने के लिए इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट को प्रोटेक्शन दिया जाएगा। इसके रजिस्ट्रेशन के लिए आईपीआर लाने जा रहे हैं। देश के प्रमुख शहरों में पेटेंट के लिए कंसलटेशन की नि:शुल्क व्यवस्था की जाएगी। पेटेंट एप्लीकेशन फीस में भी छूट दी जाएगी।
6. इसके तहत अटल इनोवेशन मिशन (AIM)  की शुरुआत की गयी है। जिसके तहत आंत्रप्रेन्योर के नेटवर्क को बनाया जाएगा। स्टार्टअप को सीड कैपिटल देने के साथ कई अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। 
7. इनोवेशन पर स्टार्टअप को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाएगा। इसके साथ साथ 35 नए इन्क्यूबेशन सेंटर खोले जाएंगे और बच्चों में इनोवेशन बढ़ाने के लिए भी कार्यक्रम शुरू किए जाएँगे जिसके लिए इनोवेशन कोर प्रोग्राम शुरू होगा।  
8. 5 लाख स्कूलों के 10 लाख बच्चों की पहचान की जाएगी जो इनोवेशन को आगे बढ़ा सकें। 

स्टार्टअप्स का आइडीया वो होता है जो रात की नींद उड़ा दे। जब युवा पागलों की तरह काम करते हैं तब जा कर वह सफल होता हैं। नए और नवप्रवतनशील विचारों का विरोध परिवार में, समाज में,दोस्तों में होता है क्यूँ के सब यही सही मानते है कि असाधारण चीज़ कभी सफलता नहीं दिला सकती। पर आज जब साधारण लोग असाधारण सपने देखते है तब दुनिया का चेहरा बदलता है। ऐसे लोगों को मान सम्मान मिलता है और नयीं पहचान बनती है। 
हमारे देश की जनसंख्या एक सौ पच्चीस करोड़ है जिसका मतलब है हमारे देश में उतने ही संदर्श अमूल्य मस्तिष्क हैं। हमारे देश में दुनिया में सबसे ज़्यादा युवाओं की शक्ति हैं जो चीन से भी अधिक है। यह हमारा कौशल और क्षमता दर्शाता हैं। भारत के पास वह सब कुछ है जिससे हम दुनिया के टेक्नालोजीकल इनवेशन का पीठ बना सकता हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में स्टार्टउपस कोलाहल मचाने और देश को अग्रणी बनाने में मुख्य सहायक बन सकता हैं।स्टार्टअप्स छोटी हो तब भी उतना ही प्रभुत्व  रखतीं है जितनी बाड़ी स्टार्टअप्स। हमारे देश के युवा प्रतिभावान है जिससे हमारे देश में सिलिकन वैली जैसा या उससे भी बड़ा कुछ स्थापित करना असम्भव नहीं हैं। शीर्ष-पाद अभिकल्प की तरह भारत के युवा स्टार्टअप्स के माध्यम से देश का चेहरा बदल सकते है, और समाज के टैबु को तोड़ देश के ध्वजधारी बन सकते हैं।यही सही समय है अगर आप स्टार्टअप करने का सोच रहे हैं तो निसंकोच आगे बढ़िए समय अनुकूल हैं।

स्टार्टअप्स का सक्सेस मंत्रा:
1. अपना आइडीया अनूठा और अनुपम रखे जितना अलग अलका बिज़्नेस आइडीया होगा सफलता का रास्ता उतना ही आसान होगा।
2. किसी भी स्टार्टअप को 5 से 10 साल तक प्रॉफिट के बारे में नहीं सोचना चाहिए। बल्कि नुक़सान को सकारात्मक तरीक़े से लेना चाहिए। 
3. कस्टमर्स को निष्ठा बरक़रार रहे इस पर फोकस करना चाहिए और अपने स्टार्टअप्स की गुणवत्ता कैसे बढ़ाए इसपर विचार करना चाहिए। ग्
4. राहक सेवा  को उत्तम कैसे रखे इसका निरंतर प्रयास करे।
5. ग्बिजनेस बढ़ाने के लिए हर वक्त कदम उठाना चाहिए। पैसे का सही उपयोग करे और एक क्षेमकरी मापदंड बनाए जिससे बिज़्नेस में वृद्धि हों।