Tuesday 19 April 2016

हाय तौबा समलैंगिकता!!! भारत में समलैंगिकता विवाद और आम धारणाए!


समलैंगिकता को परिभाषित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि आम धारणाए संप्रेषित करना अनैतिक है। समलैंगिकता सिर्फ़ एक लिंग के सदस्यों के बीच यौन सम्बंध नहीं है बल्कि सही मायने में समान लिंग के लोगों में आकर्षण और रुचि को हम समलैंगिकता कहते है। समलैंगिकता उनसे भिन्न है जो कभी-कभी अन्य पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाते है लेकिन अन्यथा विषमलैंगिक जीवन जीते है, उनसे जिनके लिए उनके यौन वरीयता उनकी पहचान का प्रमुख हिस्सा है? यह एक आम धरना है की समलैंगिक सम्बंध छल, कुंठा या हताशा के परिणाम के स्वरूप होता हैं पर ये सही नहीं है। 

भारत में होमोसेक्शुअलिटी (समलैंगिकता) एक विवादित मुद्दा है, लेकिन कोई निष्कर्ष निकालने से पहले यह जान लेना ज़रूरी है की हर शख्स को खुद को अभिव्यक्त करने की पूरी आज़ादी मिलना उसका अधिकार है। हाल हीं में शशि थरूर ने समलैंगिकता को संवैधानिक करने के लिए निजी सदस्य विधेयक सेक्शन 377 को फिर से चर्चा में लाया, लेकिन यह दूसरी बार है कि यह विधेयक सदन द्वारा इसे नकारा गया।
 
भारत में इस मुद्दे पर बहस बहुत लंबे समय से चल रही है। कई संस्थाएं समलैंगिक हितों के लिए काम कर रही हैं। फिर भी इसे सामाजिक मान्यता अभी तक नहीं मिली है। गुजरात के राजपीपला के प्रिंस मानवेंद्रा सिंह गोविल ने 2006 में अपने होमोसेक्शुअल होने की बात स्वीकारी थी। ओप्रा विन्फ़्रे के शो में अपनी कहानी सबसे शेयर की थी। जिसके बाद मानवेंद्र को उनके परिवार ने बेदखल कर दिया है। क्या यह सही है की किसी के लैंगिक रुझान के कारण उसे प्रताड़ित और दण्डित करे?

एल॰जी॰बी॰टी॰ क्या है?
एलजीबीटी का अर्थ है लेज़्बीयन, गे, बाइसेक्शूअल, त्रांसजेंडर। भारत में एलजीबीटी, समलैंगिकता और एलजीबीटी अधिकारों को बढ़ावा देने और इसे क़ानूनी बनाने के लिए हाल के दिनों बहुत प्रयास हुए है। आज तक कोई व्यक्ति भारतीय इतिहास में समलैंगिकता के लिए क़ानून द्वारा नहीं मारा गया है। लोग समलैंगिकता विरोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए है जबकि, कोई व्यक्ति आजादी के बाद समलैंगिकता के कारण सिद्धदोशि नहीं हुआ है। 

भारत का इतिहास क्या कहता है?
कई धर्मशास्त्रों में समलैंगिक आचरण की उपस्थिति ज़रूर दर्ज है, परंतु उनके द्वारा अनुमोदित नहीं है। भारतीय महाकाव्यों और इतिहास में, समलैंगिकता का याद-कदा जिक्र रहा हैं। उदाहरण के लिए, 
वाल्मीकि कृत रामायण में हनुमान जी देखते है की राक्षस महिलाएँ जो रावण चूमती है, वह आपस चुंबन कर रही है। 
महाभारत में द्रुपदरु शिखंडिनी नामक पुत्री को जन्म देते है और उसे एक लड़के के तरह पलते-पोसते है और वयस्क होने पे उसका विवाह एक दूसरी स्त्री से करवा देते है। 
शास्त्रों के अनुसार कलियुग जो लौकिक जीवन काल का अंतिम चरण है। इसी काल में यौन अनियमितताओं के सभी रूप घटित होंगे। पुरुष अप्राकृतिक छिद्रों में वीर्य जमा करेंगे (मुँह? गुदा?)। 
कामसूत्र में पुरुष अंगमर्दक द्वारा मुख-मैथुन (औपराष्टिका) की मौजूदगी भी दर्ज है।

क्या कहता है क़ानून?
भारतीय दंड संहिता का अध्याय XVI, की धारा 377 सन 1860 की है, ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया यह क़ानून आज अपना वजूद तलाश रहा है। "प्रकृति के खिलाफ यौन गतिविधियों" को यह क़ानून ग़ैरक़ानूनी क़रार देता है, जिसमें तथाकथित तौर पे समलैंगिक गतिविधियों आती है। उल्लेखनीय है कि आईपीसी की धारा 377 अक्टूबर 1860 से ही कानून का हिस्सा है। आजादी के बाद से 1860 की इस दंड संहिता में खासे बदलाव नहीं किए गए हैं। सामाजिक प्रभाव के चलते धारा 304-बी के तहत दहेज-हत्या और 498-ए के तहत महिलाओं के खिलाफ हिंसा संबंधी प्रावधानों को इसमें जोड़ा गया है। बलात्कार संबंधी धारा 376 में समय-समय पर हुए बदलावों के बावजूद धारा 377 में संशोधन नहीं किया गया। इससे साबित होता है कि सरकार और संसद ने कभी भी इस धारा को यथोचित महत्व नहीं दिया। 
इस अनुभाग पर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जुलाई 2009 में सहमत वयस्कों की समलैंगिकता को क़ानूनी मान लिया था परंतु 12 दिसंबर 2013 उच्चतम न्यायालय ने पुनः निर्देश दिए जिसमें इसे वापस पलट दिया गया और कहा गया कि धारा 377 को निरस्त करने के लिए न्यायालय ने यह मामला संसद के लिए छोड़ दिया है।


होमोसेक्सुअलिटी से संबंधी तथ्य 

जब पुरूष को पुरूष की तरफ और महिला का महिला की तरफ झुकाव हो तो उसे होमोसेक्सुअल गे/लेस्बियन कहते हैं। इस स्थिति में लोग अभिन्न लिंग की तरफ आकर्षित होते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महिलाओं और पुरूषों दोनों की तरफ आकर्षित होते हैं। उनको बाईसेक्सुअल कहा जाता है। किसी को विपरीत सेक्स, किसी को समान सेक्स और किसी को महिला और पुरूष दोनों की तरफ आकर्षण होता है। तीनों ही प्रकार के लोग नार्मल हैं। 
मॉडर्न साइंस के अनुसार समलैंगिकता की प्रवृत्ति पैदाइशी होती है। न तो इसमें ऐसे लोगों का कसूर होता है और न ही माता-पिता की परवरिश और नाहीं समाज का बहुत ज़्यादा योगदान रहता है। एक  शोध में पाया गया है की जहां मां शासी और पिता दबे हुए होते हैं, वहां संतान के समलैंगिक होने की संभावना ज्यादा होती है। दरअसल मेडिकल साइंस के अनुसार दिमाग के अंदर पाई जाने वाली पिट्यूटरी ग्लैंड या पीयूष ग्रंथि जो सेक्स हार्मोंस के रिलीज को नियंत्रित करती है, कई बार ये हार्मोंस अधिक मात्रा में तो कभी कम मात्रा में रिलीज होता हैं जिसके कारण विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण होता है। आदमी के दिमाग के अंदर किसी नयूरोंस में अगर कोई  तब्दीली आ जाती है तब हार्मोन का संतुलन अपने-आप बिगड़ जाता है जिससे होमोसेक्सुअलिटी की भावना उत्पन्न हो जाती है।
समलैंगिक लोगों में बदलाव तभी मुमकिन है, जब वह अपनी मर्जी से अपने-आप को बदलना चाहे। लेकिन परिवार या समाज के दबाव में ऐसा कर पाना मुश्किल है। एक व्यापक मिथक है कि अगर ऐसे लोगों को परिणय सूत्र में बाँध दे तो सब ठीक होजायेगा लेकिन ऐसा करना उनके और उनके भागी के साथ धोखा होगा। होमोसेक्सुअलिटी के लिए परवरिश भी जिम्मेदार हो सकती है जैसे बचपन से यौन उत्पीड़न। ऐसा भी पाया गया है की बढती उम्र के दौरान बच्चे का को-एड स्कूल में न पढ़ने से लडके कभी कभी लडकियों के प्रति सहज रूप से कम आकर्षित हो सकते है। लेकिन यह होमोसेक्सुअलिटी के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार कारक नहीं है।

होमोसेक्सुअलिटी को एड्स के लिए काफी हद तक जिमेदार माना जाता है। आमतौर पर यदि कोई लड़का किसी ऐसे लड़की के साथ सेक्स करे जिसे एड्स हो तो एड्स होने की संभावना लगभग 35 प्रतिशत तक होती है, वहीं दूसरी तरफ यदि एक लडका किसी एड्स पीडित लडके के साथ गुड-सम्भोग करे तो एड्स होने की संभावना 100 प्रतिशत तक होती है।  

यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि पर्सनेलिटी और किसी जेंडर को पसंद करने या न करने की बात तय करने में जेनेटिक फैक्टर व अन्य प्रकृतिक कारक काम करते है। इसमें किसी परंपरा या सामाजिक मूल्यों का कोई योगदान नहीं होता। ऐसी स्थिति में कानून की धारा समाप्त कर, समलैंगिकों को कुछ अधिकार देकर हम समाज की सात्विकता विद्वास्त नहीं करेंगे अपितु जो छुप-छुपा कर हो रहा है, जिससे कि बीमारी होने के ज़्यादा ख़तरा है उसे रोकने में सफल होंगे। ऐसा करने से समलैंगिक लोगों के अधिकारों को भी हम प्रतिश्स्थापित कर सकेंगे। अगर समलैंगिक लोगों को सामाजिक सुरक्षा का आभास हो तो उसने हर्ज क्या है!

By: 
Dr. Rajan Pandey  
M.B.B.S., M.D. Radio-Diagnosis(Schol.), 
Blogger & a Columnist.
Twitter: @rajanpandey001
Blogspot: http://drrajanpandey.blogspot.com/ 
Website: http://www.drrajanpandey.in/

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