Wednesday 9 March 2016

नारी जिसे अब तक सदृशता नहीं मिल पायी पर पूरा संसार उसमें समय है!: Women's day

12 सितंबर 1996 को महिला आरक्षण बिल संसद में पेश हुआ था। आज तक यह लोकसभा में पास नहीं हो सका, जबकि यह बिल 9 मार्च 2010 को राज्य सभा में पास हो गया था। तमाम राजनीतिक दल पंचायतों से लेकर निगमों तक में महिलाओं के आरक्षण को शानदार कामयाबी की तरह पेश करते हैं, मगर संसद और विधानसभा के नाम पर आकर तर्क-वितर्क के बहस में बहस उलझा देते हैं। जब भी महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करने होता है तब राजनीतिक दलों की महिला मोर्चा क्यों सक्रिय कर दी जाती है। कहीं हमारे राजनीतिक दल औरतों को राजनीति में भी घरेलू औरत की तरह तो स्थापित नहीं करना चाहते? अगर सच में राजनीतिक इच्छाशक्ति होती तो वे महिला उम्मीदवारों को टिकट देते। संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी देने के सवाल पर भारत का स्थान 108 वां हैं। पाकिस्तान 66वें स्थान और नेपाल 24वें स्थान पर होते हुए इस मामले में भारत से कहीं आगे है। देश में 18 से 19 साल के इस बार जितने भी नए मतदाता हैं, उनमें से 41 फीसदी लड़कियां हैं।भारत के सभी राज्यों में से सिर्फ़ चार राज्यों में नारी-नेतृत्य की सरकार है, आज तक सिर्फ़ एक हे महिला राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुई है, सिर्फ़ एक ही महिला प्रधानमंत्री रही है।क्यों?

नारी-शक्ति को भारतीय संस्कृति में महान स्थान दिया गया है। आदि शक्ति जिनके गर्भ से पूरी दुनिया का जन्म हुआ है और वह पूरी दुनिया की शक्ति का स्त्रोत है। नारी सशक्तिकरण के नारे के साथ एक प्रश्न उठता है कि "क्या महिलाएँ सचमुच में मजबूत बनी है?" और “क्या उसका लंबे समय का संघर्ष खत्म हो गया है?”। राष्ट्र के विकास में महिलाओं की सच्ची महत्ता और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिये मातृ दिवस, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आदि जैसे कई सारे कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाये जाते रहे गये है। महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की जरुरत है। भारत में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है, जहाँ महिलाएँ अपने परिवार ही नहीं बल्कि बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से भी पीड़ित है। भारत में अनपढ़ो की संख्या में महिलाएँ सबसे अव्वल है।

उचित शिक्षा और आजादी का उनको कभी भी मूल अधिकार नहीं दिया गया, ये पीड़ित है जिन्होंने पुरुषवादी देश में हिंसा और दुर्व्यवहार को झेला है। वैश्विक लिंग गैप सूचकांक के अनुसार, आर्थिक भागीदारी, उच्च शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के द्वारा समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिये भारत में कुछ ठोस कदम उठाने की मूल जरुरत है। जरुरत है कि महिला सशक्तिकरण की आरम्भिक स्थिति से निकालते हुए सही दिशा में तेज गति से आगे बढ़ा जाये।

लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारित करना चाहिये। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है। महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है।

महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला आरक्षण बिल-108वाँ संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरुरी है ये संसद में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी को सुनिश्चित करता है। दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाओं को सक्रिय रुप से भागीदार बनाने के लिये कुछ प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया गया है। सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके।

कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है - एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम 1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006, लिंग परीक्षण  तकनीक (नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013।

कन्या भ्रूण हत्या क्या है?

अल्ट्रासाउंड स्कैन जैसी लिंग परीक्षण जाँच के बाद जन्म से पहले माँ के गर्भ से लड़की के भ्रूण को समाप्त करने के लिये गर्भपात की प्रक्रिया को कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। कन्या भ्रूण या कोई भी लिंग परीक्षण भारत में गैर-कानूनी है। ये उन अभिवावकों के लिये शर्म की बात है जो सिर्फ बालक शिशु ही चाहते हैं साथ ही इसके लिये चिकित्सक भी खासतौर से गर्भपात कराने में मदद करते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के कुछ मुख्य कारण हैं:

आमतौर पर माता-पिता लड़की शिशु को टालते हैं क्योंकि उन्हें लड़की की शादी में दहेज़ के रुप में एक बड़ी कीमत चुकानी होती है।
ऐसी मान्यता है कि लड़कियां हमेशा उपभोक्ता होती हैं और लड़के उत्पादक होते हैं। अभिवावक समझते हैं कि लड़का उनके लिये जीवन भर कमायेगा और उनका ध्यान देगा जबकि लड़की की शादी होगी और चली जायेगी।
ऐसा मिथक है कि भविष्य में पुत्र ही परिवार का नाम आगे बढ़ायेगा जबकि लड़किया पति के घर के नाम को आगे बढ़ाती हैं।
अभिवावक और दादा-दादी समझते हैं कि पुत्र होने में ही सम्मान है जबकि लड़की होना शर्म की बात है।
परिवार की नयी बहु पर लड़के को जन्म देने का दबाव रहता और इसी वजह से लिंग परीक्षण के लिये उन्हें दबाव बनाया जाता है और लड़की होने पर जबरन गर्भपात कराया जाता है।
लड़की को बोझ समझने की एक मुख्य वजह लोगों की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी है।
विज्ञान में तकनीकी उन्नति और सार्थकता ने अभिवावकों के लिये इसको आसान बना दिया है।

निष्कर्ष:

भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये। नारी सशक्तिकरण का असली अर्थ तब समझ में आयेगा जब भारत में उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी और उन्हें इस काबिल बनाया जाएगा कि वो हर क्षेत्र में स्वतंत्र होकर फैसले कर सकें। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है।


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